Saturday 8 October 2011

भारत और हिंदी, अमरीका में - डॉ.अनीता कपूर

भारत और हिंदी, अमरीका में - डॉ.अनीता कपूर
Posted By प्रवासी दुनिया On September 26, 2011 (1:18 pm) In ब्लॉग
आज अचानक रास्ते में  बे-ट्रांसिट की बस पर मेक्डोनाल्ड का विज्ञापन को हिंदी में लिखा हुआ पाया , पहले तो एकदम से ही आँखों पर जैसे यकीन ही  नहीं हुआ ..पर दूसरे ही क्षढ़ मन जैसे गर्व से भर उठा, यह सोच कर कि, हिंदी की चादर विश्व को कितनी ज्यादा ढांप चुकी है। भारत में अंग्रेजी की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद आंकड़ों के हिसाब से हिन्दी बोलने वालों की संख्या दुनिया में आज तीसरे नंबर पर है।  विदेशी विश्वविद्यालयों ने हिन्दी को एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में अपनाया है। आंकड़ों के अनुसार आज अमरीका के 51 कालोजों में हिंदी की पढ़ाई हो रही हैं, जिसमे कुल 1430 छात्र पढ़ रहे हैं । अमरीका के ही पेनसिल्वानिया यूनिवर्सिटी में एम् बी ए के छात्रों के लिए हिंदी का 2 साल का कोर्स भी चल रहा है।
 न्यूयोर्क यूनिवर्सिटी हर वर्ष स्टार टॉक के  नाम से ख़ास तौर पर अमरीका में पैदा हुए भारतीय बच्चों को विशेष पद्धति से पढ़ाने के लिए विशेष ट्रेनिंग भी देती है। यहां कई संगठन हिन्दी के प्रचार का काम करते हैं। न सिर्फ भारतीय मूल के बच्चे वरन यहाँ के स्थानीय अमरीकन भी, भारत की संस्कृति से रूबरू होने के लिए हिन्दी सीखने की इच्छा रखते हैं. नृत्य क्षेत्र में कॅरियर बनाने के लिए भारत को चुनने वाली अमरीकन  मूल की  नर्तकी मारिया रोबिन  का कहना है कि उन्हें भारत से ही नहीं बल्कि हिन्दी भाषा से भी लगाव है. वह हिन्दी फिल्में देखना पसंद करती हैं और शाहरूख खान मारिया का पसंदीदा कलाकार हैं. मारिया यहाँ होने वाले  कम्युनिटी प्रोग्राम में हिंदी गीतों पर नृत्य भी करती है.
हमने दुनिया को वैसे भी काफी कुछ दिया हैं शुन्य से लेकर दशमलव तक,  गढ़ित से लेकर कालगढ़ना तक. ऐसे ही अब  हिंदी की बारी है. हिंदी भाषा तो बहुत सरल है. हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए अमरीका के कैलिफोर्निया, न्यू योर्क ,नोर्थ करोलिना और टेक्सास में विशेष में बहुत काम किया जा रहा है. यहाँ के कम्युनिटी सेंटर्स में हिंदी के क्लासेस चलती है. स्कूल में आफ्टर स्कूल विशेष क्लास्सेस लगाई जाती हैं . शनिवार और ऐतवार को बाल विहार स्कूल चलते हैं. जहां भारतीय संस्कृति के बारें में छोटी छोटी कहानियों द्वारा परिचय करवाने का अच्छा प्रयास है. न्यू योर्क में तो भारतीय विद्या भवन भी हैं जहाँ न सिर्फ हिंदी पढ़ाते है वरन संगीत और नृत्य की शिक्षा भी दी जाती हैं. स्कूल के छुटियो में अमरीका में  विशेष कैंप भी आयोजित किये जातें हैं. अभिवावकों से निवेदन किया जाता है की घर में वो बच्चों से अधिकतर हिंदी में ही वार्तालाप करें ,जिससे उन्हें हिंदी में बोलने में मदद मिलेगी. बच्चों में हिंदी के प्रति  रूचि पैदा करने के लिए हिंदी फिल्मों और गीतों का भी उपयोग किया जाता है जैसे गायन और नृत्य प्रतियोगिता.
जब संस्कृति की बात चलती हैं तो धर्म अनायास ही, जुढ़ा ही रहता है. अमरीका में रहने वाले प्रवासी भारतियों को मैंने अपने यहाँ प्रवास के दौरान ज्यादा ही धार्मिक पाया है. आज अमरीका में भारतियों की बढ़ती तादाद के वजह से अमरीका के ज्यादातर शहरों में मंदिर और गुरूद्वारे नजर आने लगें है. बच्चों में धार्मिक जाग्रति और ज्ञान से जोढ़े रखने में यहाँ होली और दीवाली जोर शोर से मनाई जाती है. आजकल तो हर जगह डांडिया का शोर है. माता पिता बच्चों को लगातार मदिर और गुरुद्वारा ले जाते है. फ्रेमोंट हिन्दू मंदिर , फ्रेमोंट, कैलिफोर्निया में तो आप जानकार हेरान होंगे की यहाँ बाकयदा हनुमान चालीसा हिंदी में पढ़ना सिखाया जाता हैं.
हिंदी  के कोचिंग सेण्टर भी हिंदी को बढ़ावा देने में अपना योगदान दे रहे हैं. साहित्य की महक बनी रहे उसका प्रयास अमरीका की हिंदी सिमितियाँ लगातार करती रही है… कवि-सम्मलेन और हिंदी-गोष्ठियों के माध्यम से. यहाँ १५ अगस्त (स्वंत्रता दिवस ) को भारत कि तरह ही परेड व् सभी भारतियें राज्यों की झांकियां भी निकाली जाती हैं. मेला भी भारत के मेले के तर्ज़ पर होता है. कुल मिला कर यहाँ अमरीका में रहने वाले अप्रवासी भारतियों ने एक अपना भारत यहाँ भी बार लिया है।
आपको यह जाकर और भी गौरान्वित महसूस होगा की हिंदी अमरीका की राजनीती से भी अछूती नहीं रही. हिन्दू लीडर श्री राजेन जेड जी , अमरीका के नेवाडा, कैलिफोर्निया, अरिजोना तथा और भी कई राज्यों में अस्सेम्ब्ली और सीनेट में सत्र के दौरान ,सत्र की शुरूवात हिन्दू प्रार्थना से करने के लिए आमत्रित किये जा चुके हैं।
लेकिन जहां इस बात की ख़ुशी है की , विदेशों में हिन्दी की महत्ता पिछले सालों में काफी बढ़ी है, वहीँ इस बात का दुःख भी है कि भारत में नयी पीढ़ी पर  अंग्रेजी का भूत चढ़ रहा है. कहीं ऐसा न हो कि विदेशों में हैसियत हासिल कर रही हिन्दी खुद भारत में उपेक्षित हो जाए।
भाषा, संस्कृति और धर्म एक त्रिकोण हैं और हमेशा ही जुढ़े रहते हैं . विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय अपने देश से  कभी दूर नहीं हो पाए. यह त्रिकोनी देशी महक हमें यहाँ हमेशा ही महकाती रहती है. और यह त्रिकोनी  पवित्र हवन कुंड जलता ही रहेगा जब  तक प्रयास रुपी हवन सामग्री इसमें डलती रहेगी, ऐसी हर प्रवासी भारतीय की कामना है।
- डॉ.अनीता कपूर, अमेरिका    इस लेख का लिंक

ताँका

बरसी घटा
पानी-पानी हुई मैं
बरसी घटा
उम्रके नभ खिला
दर्दीला   इंद्रधनुष 

2 

में उतरन
बनना नहीं चाहूँ
तू तो हवा सा
तूबदलता रिश्ते
कपड़ों की तरह

अन्ना की मशाल

जब से अन्ना ने जलाई, भ्रष्टाचार की मशाल

हर एक जेब जले, बाहर आने लगे !

और जब से यह जेब जले, बाहर आने लगे

नारे पे नारे लगाने लगे,

उन्हें देख, गूंगी बस्तियों के लोग भी गाने लगे!

और जब से, गूंगी बस्तियों के लोग गाने लगे

चंद बहरे भी सर हिलाने लगे!

अब, इस सरकार की बदगुमानी को क्या कहें

फितरतन, जेल में सबको डालने लगें!

हाँ, इस डरी हुई सरकार को क्या कहें

टूटती सी दिखती कमर, पर

पूरा हिन्दुस्तान उस पर लादने लगे !

अन्ना का ताब, गाँधी जैसा, लोग मानने लगे

यह सरकारी जादूगर, जैसे

नींद में भी सुर बदलने से डरने लगे!

अब नई किरण, नई जागृति, नया सुखद सवेरा

सपना, सोच, बने हकीकत के पंख

जीत रही जनता, मन हिलोरें लेने लगे!

हाइकु :अनीता कपूर


1
कटोरा धूप
रोटी रात की जैसे
गिरे आँगन
2
कुछ जो रिश्ते
बन गए आदत
दिल घायल
3
रंग हैं सातों
फागुन की कटोरी
अधूरी चाह
4
शिकवा रात का -
क्यों चुराए सितारे
सवेरा हँसा
5
जख़्मी सपने
तोडते मेरी नींद
भोर है दूर्।
6
जल ही गई
सिगरेट उम्र की
धुआँ भी नहीं।
-0-
इन हाइकुओं का हाइगा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक  कीजिए !

Sunday 2 October 2011

ताँका

   डॉ अनीता कपूर
      1
 डँसता रहा
 अतीत अब तक
परछाई-सा
कराहती जिन्दगी
फसाना बन गई ।
  
2
बिखरा मन
सर्द-सी हुई सोच
बिखरा तन
सर्द-सी हुई देह
आसमान गीला था      

वक़्त की सलवटें

डॉ अनीता कपूर

क़्त ने डाल दी है
अनगिनत सलवटें
मेरी जिंदगी की सफ़ेद चादर पर
हर सलवट
एक पूर्ण कहानी
जिसमे है
कुछ टूटने व कुछ बनने का अहसास
कली के मुस्कराने से लेकर
फूल बनकर मुरझा जाने तक का फासला
मैंने शराब की तरह पिया है
और छलक कर गिरी हुई बू
दों ने
नज्मो की शक्ल अख़्तियार कर ली है
-0-

रिश्ते

डॉ अनीता कपूर

कुछ रिश्ते जब बोझ बनने लगते हैं
दिए हुए नाम मिटने लगते हैं
जले हुए दिए बुझने लगते हैं
तो रिश्तो में से  काँटें निकल आतें हैं
हूलुहान होकर हम जिंदगी की बाजी हार जाते हैं
कुछ रिश्तें ऐसे भी होतें हैं
जो अनाम होतें हैं
क्त की गर्दिश से मुस्कुरानें लगतें हैं
समझदारी से सींच दो तो
अजूबा
कैक्टस में भी गुलाब खिलनें लगतें हैं
-0-

मशाल

जब से अन्ना ने जलाई, भ्रष्टाचार ख़त्म करने की  मशाल 
हर एक जेब जले, बाहर आने लगे !
और जब से यह जेब जले, बाहर आने लगे
नारे पे नारे लगाने लगे,
उन्हें देख, गूंगी बस्तियों के लोग भी गाने लगे!
और जब से, गूंगी बस्तियों के लोग गाने लगे

चंद बहरे भी सर हिलाने लगे!
अब, इस सरकार की बदगुमानी को क्या कहें
फितरतन, जेल में सबको डालने लगें! 
हाँ, इस डरी हुई सरकार को क्या कहें
टूटती सी दिखती कमर,  पर 
पूरा हिन्दुस्तान उस पर लादने लगे !
अन्ना का ताब, गाँधी जैसा, लोग मानने लगे 

यह सरकारी जादूगर, जैसे
नींद में भी सुर बदलने से डरने लगे!
अब नई किरण, नई जागृति, नया सुखद सवेरा   
सपना,  सोच,  बने हकीकत के पंख 
जीत रही जनता, मन हिलोरें लेने लगे!