आइए आपका इन्तजार था
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रचनाकार
त्रिवेणी
उदन्ती
अभिव्यक्ति
अनुभूति
Thursday 19 January 2012
खुद सुबह सर्दी से ठिठुरती
अलसाई अलसाई
पिछवाड़े की झाड़ियों में अटकी हुई
कोहरे के चादर में मुँह छिपा
इतनी सिकुड़ गयी है
घबरा कर बाहर आ कर
चाय की चुस्की लेने से भी
डर गयी
है
बनता ही रहता है नज़मों का ताजमहल तब तक
रहे लफ़्जों की महक कागज़ के बदन पर जब तक
Saturday 14 January 2012
हाइकु
बीजो फूल को
रूह की बगिया में
महके रिश्ते
Wednesday 11 January 2012
सम्बन्ध अनजाना( हिन्दी चेतना )
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