जब तुम थे मेरे साथ
हम दोनों थे हमारे पास
रिश्ते की ओढनी थी
लफ़्ज़ों के रंगीले सितारे
टंके ही रहते थे
नशीले आसमां पर.....
फिर तुम चले गए
कई बरसों बाद
अचानक एक मुलाक़ात
हम ओढनी के फटे हुए
टुकड़ों की तरह मिले
मेरा टुकड़ा
तुम्हारे सड़े टुकड़े के साथ
पूरी न कर पाया वो अधूरी नज़्म
सिसकते टुकड़ों पर फेर लकीर
सांस लेने के लिए
खोल दी है मैंने
सभी खिड़कियाँ
वाह ...बहुत ही सुंदर भाव संयोजन किया है आपने...लाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeleteरिश्ते की ओढनी लफ़्ज़ों के सितारे ... वाह.. बहुत खूब... एकदम अनूठी कल्पना...
ReplyDeletebahut hi khubsurat..
ReplyDeletebahut hi khubsurat
ReplyDeletekhikiyaan khol dene par hawa aur roshni ke liye raah ban jaati hai.sundar kavita ke liye badhaai.
ReplyDeletebahut sundar bhav
ReplyDeleteNayee bhav-bhuumi par rachee gayee aik behtreen kavita.Hardik badhai,Dr.Sahiba.
ReplyDeleteMEETHESH NIRMOHI,JODHPUR[RAJASTHAN].
ऐसे ही दम घुटता है जब मन मिलकर भे बेमेल हो जाते हैं। बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबधाई अनिता जी!
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteपंक्तियों के सुन्दर भाव
.............. लफ़्ज़ों के झाड़ ऊगे रहते थे
जब तुम थे मेरे साथ
हम दोनों थे हमारे पास
रिश्ते की ओढनी थी
लफ़्ज़ों के रंगीले सितारे
टंके ही रहते थे
पूरी न कर पाया वो अधूरी नज़्म
ReplyDeletebahut sundar
sunder bhavon se saji kavita
ReplyDeletebadhai
rachana