वैश्विक परिप्रेक्ष्य
के संदर्भ में आज हिन्दी भाषा की जब चर्चा होती है, तो देखते है कि, विश्व के
स्तर पर हिन्दी भाषा के महत्व को अब व्यापक स्वीकृति मिल रही है। हिन्दी न सिर्फ संवाद
का माध्यम है अपितु संस्कृति और साहित्य की भी सबल समर्थ स्ंवाहिका बन गयी है। भारत
में अंग्रेजी की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद आँकड़ों के हिसाब से हिन्दी बोलने वालों
की संख्या दुनिया में आज तीसरे नंबर पर है। विदेशी विश्वविद्यालयों ने हिन्दी को एक
महत्त्वपूर्ण विषय के रूप में अपनाया है। आज विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय के मन में यह सवाल कुछ धुंधला
सा होता जा रहा है...."कि अपना देश छोड़
कर हम यहाँ क्यों आ बसे हैं. हमारे इस फैसले से कहीं हमारें बच्चें
अपनी संस्कृती और भाषा से दूर तो नहीं हो जायेंगे?..आदि आदि "!
भारत से विदेशों में आने का वैसे तो एकमात्र कारण आर्थिक बहुलता,
धन वैभव एवं एक उत्तम जिंदगी
बसर करना ही है। पर साथ ही में वो बच्चों को बिलकुल उसी प्रकार से पालना और संस्कार
देना चाहते है..जैसे वो भारत में रहते हुए दे सकते थे...
और बिलकुल वैसा होना संभव भी हो पा रहा है, तो
उसका श्रेय, यहाँ की बहुत सी सामाजिक संस्थाएं और स्कूल्स को
भी जाता है, जो हिन्दी के प्रचार-प्रसार
में जी जान से जुटी हैं।
यहां कई संगठन
हिन्दी के प्रचार का काम करते हैं। न सिर्फ भारतीय मूल के बच्चे वरन यहाँ के स्थानीय
अमरीकन भी, भारत की संस्कृति
से रूबरू होने के लिए हिन्दी सीखने की इच्छा रखते हैं।भारत ने दुनिया को वैसे भी काफी
कुछ दिया हैं शुन्य से लेकर दशमलव तक, गढ़ित से लेकर कालगढ़ना
तक। ऐसे ही अब हिंदी की बारी है। हिंदी भाषा तो बहुत सरल है। हिंदी भाषा को बढ़ावा
देने के लिए अमरीका के कैलिफोर्निया, न्यू योर्क ,नोर्थ करोलिना और टेक्सास में विशेष रूप से बहुत काम किया जा रहा है। बच्चों
में हिंदी के प्रति रूचि पैदा करने के लिए
हिंदी फिल्मों और गीतों का भी उपयोग किया जाता है जैसे गायन और नृत्य प्रतियोगिता।
जब संस्कृति
की बात चलती हैं तो धर्म अनायास ही,
जुढ़ा ही रहता है। अमरीका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों को मैंने अपने
यहाँ प्रवास के दौरान ज्यादा ही धार्मिक पाया है। साहित्य की महक बनी रहे उसका प्रयास
अमरीका की हिंदी समितियां लगातार करती रही है... कवि-सम्मलेन और हिंदी-गोष्ठियों के माध्यम से। भाषा के विकास
और प्रचार के लिए पत्र-पत्रिकाओं का बहुत बड़ा योगदान होता है।
अमरीका, कनाडा, यू.के. और औस्ट्रेलिया से कई पत्रिकाएँ और समाचार पत्र लगातार
प्रकाशित हो रहे है। जनसंचार माध्यम से हिंदी को लोकप्रिय बनाने में जनसंचार माध्यमों
का भी अत्यधिक योगदान है। रेडियो, टेलीविजन, और अब इंटरनेट के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता। भाषा, संस्कृति और धर्म एक त्रिकोण हैं और हमेशा ही जुढ़े रहते हैं। विदेशों में
बसे प्रवासी भारतीय अपने देश से कभी दूर नहीं
हो पाए। यह त्रिकोनी देशी महक हमें यहाँ हमेशा ही महकाती रहती है. और यह त्रिकोनी पवित्र हवन कुंड जलता ही रहेगा जब तक प्रयास रुपी हवन सामग्री
इसमें डलती रहेगी, ऐसी हर प्रवासी भारतीय की
कामना है। जिस तरह पूरी दुनिया में अँग्रेजी का बोलबाला है, और
भारतीय अँग्रेजी, ब्रिटिश अँग्रेजी तथा अमेरिकन अँग्रेजी जैसे
पदबंध प्रचलित हो गए हैं... वैसे ही एक संभावना हरेक हिन्दी प्रेमी
के मन में है कि,
ठीक इसी तरह भविष्य में हिन्दी भी,
ब्रिटिश हिन्दी, अमेरीकन हिन्दी या रशियन हिन्दी
हो जाये। इस सपने को पूरा करने के संदर्भ में हमें उन देशों से सीखना होगा जो अपनी
मात्रभाषा से प्रेम करते है और उसके प्रचार के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।
हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर
एक अलग एवं सफल मंच पर विराजमान करने का श्रेय इन सभी विदेश में रह रहे हिन्दी भाषा
के साहित्यकारों को जाता हैI परिणामस्वरूप आज हिन्दी का विकास अन्य भारतीय भाषाओं
की कीमत पर नहीं बल्कि उनके साथ हो रहा है, और यहाँ तक कि वह
अँग्रेज़ी से प्रतिस्पर्धा न करके अपने सर्वांगीण विकास की ओर उन्मुख हो रही है I कुल मिला कर यहाँ अमरीका में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों ने एक अपना भारत
यहाँ भी बसा लिया है।
आपका संपादकीय सामयिक है और यदि हम जीवन में अहंकार से मुक्ति पा सकें तो बहुत सी बुराइयां स्वयमेव समाप्त हो जायेंगी। अपने सही कहा है जरूरत है इस अहंकार रूपी रावण को मारा जाए। आपको इस बेहतरीन संपादकीय के लिए बधाई !
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