Tuesday 21 February 2012


तेरी परछाइयाँ और मेरी परछाइयाँ

चलो आज मिलकर एक चेहरा हो जाएँ 


तेरी तन्हाईयां और मेरी तन्हाईयां

चलो आज मिल कर हसीन आशियाँ हो जाये


नक़द मुलाकातों के सिलसिले शुरू तो करें

फिर उधार के रिश्ते खुद ही दरकिनार हो जाएँ


रिश्तों की कोख से ख़ूब जन्मेंगी नज़्में

मुन्तजिर निगाहों की झलक तो मिल जाये


मक़तल न बन जाये कहीं दश्त-ओ-दिल मेरा

ज़रा लफ़्ज़ों को इश्क़ का पैगाम तो मिल जाये


2 comments:

  1. नक़द मुलाकातों के सिलसिले शुरू तो करें
    फिर उधार के रिश्ते खुद ही दरकिनार हो जाएँ

    वाह!!! बस एक ही शब्द गजब का लिखा है आपने ....

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  2. तेरी परछाइयाँ और मेरी परछाइयाँ

    चलो आज मिलकर एक चेहरा हो जाएँ

    bahut khub

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