Sunday 9 March 2014

रफ़फू
दिन की बस्ती के
दोपहर वाले नुक्कड़ से
आज एक शाम खरीद लायी हूँ मैं
स्मृतियों के उलझे धागों से
बीते दिनों को रफ़फू कर लूँगी

बहुत रातों से सोयी नहीं हूँ मैं 

10 comments:

  1. आपका ब्लॉग बहुत मनमोहक है
    और रचना जीवन का संगीत …
    बधाई अनिता जी

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  2. वाह अनुपम रचना .मंजुल

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  3. बहुत सुन्दर ..

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  4. अति सुंदरा .. ब्लॉग भी बहुत ही सुन्दर बना है :)

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  5. अतिसुन्दर ..ब्लॉग भी बहुत सुन्दर बना है

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  6. ज़िन्दगी को अब ख़ुशनुमा बनाने का यही एक रास्ता बचा है
    कि जहाँ से ख़ुशी मिले ले लो और अपनी ज़िन्दगी को रफ्फ़ू कर लो।
    बहुत सुन्दर जज़्बात लिए सुन्दर पक्तियाँ

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  7. गज़ब... काश! बीते जीवन के सभी लम्हे रफू हो पाते... बहुत सुन्दर भाव, बधाई.

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