वक्त की खूंटी पर
मेरी जिंदगी को
टांग कर अक्सर
मेरे ही दर्द
नहाने चल देते हैं
नदी में
उजले हो कर लौटते हैं
और
गुनगुनाते हुए
मेरी पीढ़ा के दंश को
नाग बन चूस लेते हैं
सहमे से मेरे प्राण
सुख के खरगोश
ढूंढने लगते हैं।
मेरी जिंदगी को
टांग कर अक्सर
मेरे ही दर्द
नहाने चल देते हैं
नदी में
उजले हो कर लौटते हैं
और
गुनगुनाते हुए
मेरी पीढ़ा के दंश को
नाग बन चूस लेते हैं
सहमे से मेरे प्राण
सुख के खरगोश
ढूंढने लगते हैं।
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