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अनुभूति
Thursday, 19 January 2012
बनता ही रहता है नज़मों का ताजमहल तब तक
रहे लफ़्जों की महक कागज़ के बदन पर जब तक
4 comments:
तेजवानी गिरधर
19 January 2012 at 05:57
waah
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avanti singh
20 January 2012 at 02:53
waah! bahut khub......
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Maheshwari kaneri
20 January 2012 at 03:51
बहुत सुन्दर...
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kavita verma
20 January 2012 at 04:24
sunder...
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waah
ReplyDeletewaah! bahut khub......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeletesunder...
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