Sunday 2 October 2011

रिश्ते

डॉ अनीता कपूर

कुछ रिश्ते जब बोझ बनने लगते हैं
दिए हुए नाम मिटने लगते हैं
जले हुए दिए बुझने लगते हैं
तो रिश्तो में से  काँटें निकल आतें हैं
हूलुहान होकर हम जिंदगी की बाजी हार जाते हैं
कुछ रिश्तें ऐसे भी होतें हैं
जो अनाम होतें हैं
क्त की गर्दिश से मुस्कुरानें लगतें हैं
समझदारी से सींच दो तो
अजूबा
कैक्टस में भी गुलाब खिलनें लगतें हैं
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2 comments:

  1. रिश्तों को आपने व्यावहारिक परिभाषा दी है । अनाम रिश्ते जीवन की धूप छाँव में आगे बढ़कर हमें हौसला ही नहीं देते वरन् सँभाल भी लेते हैं। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !!

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  2. सरल शब्दों में बहुत बड़ी बात...

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