Sunday 2 October 2011

ताँका

   डॉ अनीता कपूर
      1
 डँसता रहा
 अतीत अब तक
परछाई-सा
कराहती जिन्दगी
फसाना बन गई ।
  
2
बिखरा मन
सर्द-सी हुई सोच
बिखरा तन
सर्द-सी हुई देह
आसमान गीला था      

4 comments:

  1. जीवन के दुखों का कराहना, अतीत का डँसना ;इस सारी दारुण व्यथा को आपने बड़ी संज़ीदगी से पाँच पंक्तियों में मोती की तरह पिरो दिया है ऽअपकी भाषिक सामर्थ्य वास्तव में काबिले-तारीफ़ है अनीता जी !

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  2. सर्द-सी हुई सोच
    bahut hi sunder soch bhavon ka guldasta
    badhai
    rachana

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  3. सुन्दर प्रस्तुति ...

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  4. दूसरा तांका बहुत खूबसूरत है |

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