डॉ अनीता कपूर
डँसता रहा
अतीत अब तक
परछाई-सा
कराहती जिन्दगी
फसाना बन गई ।
अतीत अब तक
परछाई-सा
कराहती जिन्दगी
फसाना बन गई ।
2
बिखरा मन
सर्द-सी हुई सोच
बिखरा तन
सर्द-सी हुई देह
आसमान गीला था ।
सर्द-सी हुई सोच
बिखरा तन
सर्द-सी हुई देह
आसमान गीला था ।
जीवन के दुखों का कराहना, अतीत का डँसना ;इस सारी दारुण व्यथा को आपने बड़ी संज़ीदगी से पाँच पंक्तियों में मोती की तरह पिरो दिया है ऽअपकी भाषिक सामर्थ्य वास्तव में काबिले-तारीफ़ है अनीता जी !
ReplyDeleteसर्द-सी हुई सोच
ReplyDeletebahut hi sunder soch bhavon ka guldasta
badhai
rachana
सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteदूसरा तांका बहुत खूबसूरत है |
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